Incredible Leh Ladakh 

बर्फ से ढके हिमालय, ज़ांस्कर और काराकोरम पर्वतमाला की आकाश-भेदी चोटियों से घिरा एक खूबसूरत इलाका जो श्योक, ज़ांस्कर और सिंधु नदियों के क्रिस्टल जल से और सुनहरा दिखाई देता है। लेह लद्दाख का मुख्य शहर है। साथ ही ये दुनिया का सबसे ठंडा मरुस्थल है। ये समुद्र तल से 11,000 फीट की ऊंचाई पर है। लेह शहर साहसिक खेलों के लिए जन्नत है। इसके ऊबड़ खाबड़ इलाके और नदियां पहाड़ों में चढ़ाई करने (ट्रेकिंग), पहाड़ों के बीच बह रही नदी में नांव से सैर करने (रिवर राफ्टिंग), पहाड़ों के बीच टैंट लगाकर रात गुज़ारने (कैंपिंग) और मोइरसाइकिल चलाने के लिए शानदार हैं। जैसा कि ठंडी का मौसम करीब है। ऐसे में शहर बर्फ की चादर में ढक गया है। इस तरह से ठंडी के मौसम में खेले जाने वाले खेलों के लिए ये कमाल की जगह बन गई है। जानी मानी यात्रा चादर ट्रेक एक बेहद ठंडे गांव से शुरू होती है। यह गांव शहर से 66 किलोमीटर की दूरी पर है। यह यात्रा बर्फ से जमी हुई नदी जांस्कर का ज्यादातर इलाका कवर करती है। इस यात्रा के दौरान यात्री कई ऐसी जगहों से भी गुजरते हैं जहां बर्फ की परत बहुत पतली होती है। ऐसे में बर्फीली नदी में डूब जाने का भी अंदेशा होता है। इसके अलावा यात्री बर्फीली गुफाओं में भी रात गुजारते हैं।

लेह तीन बेहद ऊंची और खूबसूरत झीलों त्सो मोरीरी, त्सो कर और पैंगोंग त्सो से घिरा हुआ है। ये झीलें ऐसी दिखाई देती हैं जैसे जमीन पर नीलम जड़े हुए हो। प्राकृतिक अजूबा जो यात्रियों को हक्का बक्का छोड़ देता है वह है चुंबकीय पहाड़ी। यह पहाड़ी शहर के बाहर मौजूद है। कहा जाता है कि ये गुरुत्वाकर्षण को नकारते हुए वाहनों को ऊपर खींचती है। लेह बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र है और यहां कई महत्वपूर्ण मठ हैं। यात्री कई सारी मठों की यात्रा पर जा सकते हैं और उस इलाके की प्राचीन संस्कृति से रूबरू हो सकते हैं। यहां दीवारों पर पुरानी समय की पेंटिंग बनी हुई हैं, जिनमें ध्यान, चिकित्सीय और आध्यात्मिक गतिविधियों का जिक्र किया गया है।

लेह शहर लद्दाख राज्य की पहले राजधानी हुआ करता था। इसलिए यहां पर लद्दाख का समृद्ध इतिहास नजर आता है। 17वीं सदी से ही लेह पैलेस शहर के बीचों-बीच बना हुआ है। यह मध्यकालीन तिब्बती वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। अगर आप लद्दाखी संस्कृति का आनंद लेना चाहते हैं तो उसका सबसे बढ़िया तरीका ये है कि आप वहां किसी स्थानीय व्यक्ति के घर में रहें। वे आपको लद्दाखी संस्कृति से रूबरू कराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे। एक अन्य तरीका इस इलाके को जानना का है, इसके फलों का आनंद लेना। खुबानी, सेब अन्य फल और सब्जियां जो इसके बागों और बाजारों में पाई जाती हैं।

ज़ांस्कर घाटी

13,154 फीट की ऊंचाई पर स्थित, ज़ांस्कर घाटी एक शुष्क बंज़र इलाका है। यह शानदार हिमालय के उत्तरी भाग में स्थित है। इस क्षेत्र में पर्यटकों को आकर्षित करने वाले खूबसूरत बर्फ से ढके पहाड़, सुखद मौसम, ज़ांस्कर के शानदार झरने और हरे-भरे परिदृश्य हैं। घाटी लेह से 105 किमी दूर है और साहसिक खेलों जैसे ट्रेकिंग, पैराग्लाइडिंग, वॉटर राफ्टिंग आदि के लिए शानदार जगह है। यहां, आप लोकप्रिय ट्रेकिंग विकल्प जैसे लामायुरू से दारचा, लामायुरू – पदुम ट्रेक भी चुन सकते हैं। ज़ोंगला, ज़ोंगखुल, स्ट्रांगडी जैसे सदियों पुराने मठों में पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है और यहां तक कि सुरू घाटी से ज़ांस्कर को अलग करने वाले सुंदर पेन्जिला पास में शिविर भी लगाया जा सकता है। सर्दियों के दौरान, तापमान एक -30 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है। कोई भी व्यक्ति जून से सितंबर के महीनों के बीच ही ज़ांस्कर की यात्रा कर सकता है, अन्यथा घाटी की सभी सड़कें बर्फ से ढकी हुई होती हैं इस तरह से आने जाने का रास्ता बंद रहता है।

सो कार झील

लद्दाख की तीन ऊंची-ऊंची झीलों में से सबसे छोटी सो कार झील सो मोरीरी से लगभग 50 किमी दूर है। 15,280 फीट की ऊंचाई पर स्थित, यह ऊंचे पहाड़ों से घिरी है जो हाथ ना आने वाले हिम तेंदुए का घर है। इसके किनारे पर पानी के जमाव में सफेद नमक की मात्रा के कारण इसे सफेद झील भी कहा जाता है, यह पर्यटकों को अपनी सुंदरता से आकर्षित करती है। झील के आसपास का क्षेत्र वन्यजीवों और वनस्पतियों से भरा हुआ है और यह पक्षियों पर नजर रखने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु भी है। पक्षियों पर नजर रखने वाले खासकर प्रवास के मौसम के दौरान यहां नजर आते हैं। इस दौरान कई प्रजातियां अपने अंडे देने के लिए यहां आती हैं, जिसमें काले गर्दन वाले क्रेन भी शामिल हैं। ठगजे और गुरसेन की खानाबदोश बस्तियां झील और उसके आसपास के क्षेत्र की रक्षा करती हैं। इस झील की यात्रा करने का सही समय मई और अगस्त के महीनों के बीच है।

त्सो मोरीरी

कठोर बर्फीले दृश्य के बीच एक नीलम की तरहए भव्य त्सो मोरीरी झील लद्दाख क्षेत्र की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है।  चांगथांग घाटी में बसे इस 28.किलोमीटर लंबे प्राचीन जल निकाय को माउंटेन लेक भी कहा जाता है।  क्योंकि यह कई ऊंची चोटियों से घिरा हुआ है। दिन के किसी भी समयए आप पक्षिओं को फड़फड़ाते हुए देख सकते हैं।  इस झील को अब वेटलैंड रिजर्व का नाम दिया गया है। लोकप्रिय एविफुना में से कुछ आप नंगे सिर वाले हंसए महान.क्रेस्टेड ग्रीबेए ब्राह्मण बतख और भूरे रंग के सिर वाली मुर्गाबी देख सकते हैं।  पर्यटक कुछ किस्मों जैसे भारल या नीली भेड़ए मरमोटए तिब्बती भेड़ए लाल लोमड़ी और किआंग या तिब्बती गधा भी देख सकते हैं। इस झील के पास सबसे ज्यादा हिमालयी खरगोश पाए जाते हैं।  त्सो मोरीरी उन लोगों के लिए सबसे बढ़िया जगह है जो पहाड़ों में बाइक चलाने का लुत्फ उठाने आए हैं।  लद्दाखी इसे एक पवित्र झील मानते हैं।

सुरू घाटी

लद्दाख के सफर पर जाएं तो कुदरत का सबसे अलग नजारा देखने के लिए सुरू घाटी को देखना न भूलें। बर्फ से ढकी पहाड़ियों, प्राचीन नदियों से घिरी सुरम्य सुरू घाटी लद्दाख की सबसे खूबसूरत घाटी है। इस घाटी की सबसे खास चीज बरामदा के आकार की डिब्बीनुमा घाटियों का एक समूह है। कारगिल जिले में स्थित यह घाटी तुर्की और तिब्बती वास्तुकला का मिश्रण समेटे हुए है, जो यहां के विचित्र घरों को देखने से पता चलता है। यहां का सबसे आकर्षक कार्तसे खार है, जिसमें भगवान बुद्ध की 7वीं शताब्दी की एक प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा लगभग 7 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पर्यटक यहां से रंगदूम भी जा सकते हैं, जहां एक सुंदर मठ है और दो छोटी बस्तियां हैं। पर्वतारोहण करने या भ्रमण पर जाने के इच्छुक लोगों के लिए पानीखार यहां बेस है। इस घाटी में जंगला मठ भी पास में स्थित है। यह खूबसूरत मठ देखने के लायक है। यहां अवश्य जाना चाहिए। सूरू घाटी की पहाड़ियों की खेती लद्दाख में सबसे अधिक होती है। इसके अलावा जोखिम से आनंद खोजने वाले साहसिक कुदरत प्रेमियों के लिए, नन कुन पर्वत की चोटी के अलावा अल्पाइन ढलानों और आकर्षक चोटियां दूर से ही दिखाई देती हैं।

स्टोक पैलेस

शहर के बाहरी इलाके में सिंधु नदी के तट पर स्थित स्टोक पैलेस आज भी शाही विरासत की अनूठी निशानी है।  अपनी यादो को समेटे यह तीन मंजिला स्टोक पैलेस लद्दाख के शाही परिवार का गर्मियों का घर बना हुआ है। इसके 80 कमरों में से 12 कमरे आज भी आकर्षक साज.सज्जा से सजे हुए हैं।  विरासत को समेटे यह स्टोक पैलेस देखने लायक है। इस पैलेस की सैर अवश्य करना चाहिये क्योंकि यहां पर शाही थानका पेंटिंग्सए राजा के मुकुटए प्राचीन शाही कपड़ेए सिक्केए फिरोजा और लापीस लजुली के जेवर देखने की बहुत ही आकर्षक चीजें हैं। यहां रानी के प्राचीन फिरोजा के जेवर और सोने की सिर में पहनने वाला जेवर जुबूर आने वालों को अपनी ओर खींचता है। इसके अलावा इस पैलेस में कई धार्मिक वस्तुओं का अच्छा संग्रह है।   इस पैलेस में 16 वीं शताब्दी की एक अफगाना तलवार भी है। महल के मैदान में एक कैफे हैए जो खूबसूरत नजारा पेश करता है।  महल से थोड़ी दूरी पर बौद्ध मठ हैए जिसे लामा लवंग लोटस ने बनवाया था। यहां हर सालए तिब्बती कैलेंडर के पहले महीने के 9 वें और 10 वें दिन विशेष नृत्य पेश किया जाता है  ।  इस नृत्य की खासियत यह है कि नाचने वाले कलाकार का  नकाब से चेहरा ढका रहता है। इस महल को 1820 में लद्दाख के शासक राजा त्सपाल नामग्याल ने बनवाया था। जब डोगरा सेना ने उनके लेह पैलेस पर आक्रमण किया ए तो राजा और उनका परिवार इस स्टोक पैलेस में चले आए थे।

शांति स्तूप

टेढ़ी.मेढ़ी पहाड़ियों के बीच स्थितए शांति स्तूप का प्राचीन भवन कला का शानदार नमूना है।  खूबसूरत बौद्ध भित्ति चित्र और भव्य कलाकृति के साथ सजी स्वर्ण कलाकृति इस स्तूप को एक आकर्षक पर्यटन स्थल बनाती है। आसपास की शांति और खूबसूरती में रमने के लिएए यात्री मंत्रों का उच्चारण करते हुए स्तूप के चारों ओर चक्कर लगा सकते हैंए माना जाता है कि ऐसा करने से मन को अपार शांति मिलती है।  पर्यटक स्तूप के टावर की बालकनी की ओर जा सकते हैं और आसपास के खूबसरत दृश्यों से रूबरू हो सकते हैं।  यह माना जाता है कि स्तूप का निर्माण 1983 से 1991 के बीच जापानी भिक्षुओं ने बौद्ध धर्म के 2ए500 साल पूरे होने को चिह्नित करने के लिए किया था।  इसके निर्माण का मकसद विश्व शांति के विचार को बढ़ावा देना था।  स्तूप तक पहुंचने के लिए आपको जांगस्पा से 15 मिनट की पदयात्रा करनी होगी।

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